Sunday, 31 December 2017

नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।

मंगलमय हो सुन्दर- सुन्दर
तिमिर गहन का नाम नहीं हो
द्वेष-घृणा सब तिरोहित हों
कहीं क्लेष, दुर्भाव नहीं हो

जन-जन में उत्कर्ष भरो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।

धरती बिहँसे, अम्बर गाये
जग- आँगन में ख़ुशी समाये
बोध परायेपन का रहे ना
सुख-सपनों  की बदली छाये

जगमग-जगमग विश्व करो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे। 

जीवन वसंत- सा चहक उठे
सुरभित जग का हर कोना हो
तन-मन निर्मल-निष्पाप बने
नवल-नवल  कण-कण चिन्मय हो

मधुर मधु संस्पर्श  करो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे। 


                                                                   प्रदीप्त 

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