दिनांक १३/०८/२०१७ को कालिदास रंगालय, पटना में "आशा" संस्था के द्वारा नाटक रामलीला का मंचन किया गया, इस नाटक के निर्देशक रहे मोहम्मद जहांगीर ने अपने नाटक रामलीला के द्वारा फिर से एक मिशाल कायम की है, । निर्देशक का काम ही होता है, अभिनेता में छुपे अभिनय को निकाल उसे तरासना, और उसे उस मंच लायक बनाना जहाँ वो जाना चाहता है, चाहे वो कोई भी मंच क्यों ना हो।
युवा निर्देशक मोहम्मद जहांगीर ने इससे पहले भी कई नाटको (हाथी, एक और दिन, महा निर्वाण, पकवा घर , अटकी हुई आत्मा,) आदि का निर्देशन किया है। कहानी का मंचन करना अपने आप में एक चुनौती होती है। उसके बावजूद भी अपने और अपने साथ जुड़े रंगकर्मियों के ऊपर विश्वास और अपने काम के प्रति एक सच्ची निष्ठा ही उन्हें एक सफल निर्देशक होने का श्रेय प्रदान करता है।
मुंशी प्रेमचंद की कहानी "रामलीला" और ऊपर से नौटंकी शैली दोनों का मिलान एक साथ देख कर काफी अच्छा लगा। रामलीला के सभी अभिनेता ने अपने अभिनय की एक अमिट छाप छोड़ी है। राम -लक्ष्मण-सीता के साथ आबादीजान ने भी अपनी अदा से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। मुझे याद है की ये पूरा नाटक एक वर्कशॉप के माध्यम से खड़ा हुआ था। ताकि अभिनेता अपने अंदर छुपे कला को पहचाने और आपने आप को जान सके । सारे वस्त्र और आभूषण जो अभिनेताओं को चरित्र चित्रण में सहयोग कर रहे थे, खुद अभिनेताओं द्वारा ही निर्मित थे , चाहे वो धनुष हो, गदा हो, या विशाल छत्र।
राम का श्रृंगार करता युवक |
नाटक रामलीला का एक दृश्य |
नाटक की बात करे तो, ये नाटक एक बच्चे के मन से समाज के लोगो के दोहरे चरित्र को समझने की कोशिश है। रामलीला एक बच्चे की कहानी है, जो बचपन से अपने गांव में होने वाले रामलीला को देख काफी प्रभावित होता है, और उस रामलीला में बने राम को ही वास्तविक का प्रभु राम समझता है और उनके प्रति श्रद्धा रखता है। जो की एक बाल मन के लिए स्वाभाविक है। वो उनके लिए जो बनता है, करता है। नाटक का एक गीत "गुल्ली डंडा खेले का बंडा " ने दर्शको को सीधा बचपन की ओर ले जाने पर विवस कर दिया। वही गीत "फुरकत के हजारो रातो में एक रात सुहानी मांगी थी " पर वेश्या की भूमिका कर रही अभिनेत्री ने उसे जीवंत कर दिया।
आबादीजान की भूमिका में साधना श्रीवास्तव |
आबादीजान की भूमिका में शिल्पा भारती |
नाटक के एक दृश्य में आबादीजान कहती है की - यहाँ आप-जैसे काइयों को रोज़ उँगलियों पर नचाती हूँ। ये काइयाँपन शब्द समाज को उन लोगो के सीधा सामने पाती है जो दोहरे चरित्र से है । यहाँ हर एक आदमी दूसरे आदमी को नसीहत देते दिखता है। पर खुद अमल नहीं करता है।
नाटक का अंतिम दृश्य |
नाटक के एक दृश्य जब रामलीला समाप्त हो जाती है तो उसी राम बने व्यक्ति को कोई पूछता तक नहीं है। उनके पास वापस जाने को किराये तक के पैसे नहीं होते है, जबकि नाचने वाली औरतो पर लोग पैसे लुटा झूठी शान दिखा रहे होते है। और ऐसे लोगो में उस बच्चे के पिता भी होते है। जो राम के प्रति श्रद्धा रखता है। यह सब देख कर वो बाल मन बैचैन हो उठता है। वह अपने पिता से भी पैसे मांगता है मगर वो इंकार कर देते है। जिससे बच्चे के मन में पिता के प्रति नफरत भर जाती है। और अंत में वो बालक अपने जमा दो आने पैसे उस इंसान रूपी राम को देता है।
नाटक के अंतिम पंक्ति ने उस बच्चे के भाव को कुछ यू समेटा- उन पैसों को देखकर रामचंद्र को जितना हर्ष हुआ, वह मेरे लिए आशातीत था। टूट पड़े, प्यासे को पानी मिल गया।
यही दो आने पैसे लेकर तीनों मूर्तियाँ बिदा हुई! केवल मैं ही उनके साथ क़स्बे के बाहर तक पहुँचाने आया। उन्हें बिदा करके लौटा, तो मेरी आँखें सजल थीं, पर हृदय आनंद से उमड़ा हुआ था।
मंच पर
शिल्पा भारती/ साधना श्रीवास्तव
अजित कुमार
चन्दन कुमार प्रियदर्शी
मोहम्मद फुरकान
राहुल कुमार
शशांक शेखर
उज्जवल कुमार
सन्नी कुमार
कोरस- तेज नारायण, राज, अनुराग, अंशु, राजकुमार,
मंच परे
प्रकाश परिकल्पना- राहुल रवि, रौशन कुमार
संगीत - अजित कुमार
गीत - समूह
स्वर - मोहम्मद आसिफ, संतोष कुमार तूफानी, स्वरम उपाध्याय, निशा कुमारी, उदय कुमार
हारमोनियम- मोहम्मद आसिफ
ढोलक- हीरालाल
नगाडा- अरुण कुमार
क्लानेर्ट- कामाख्या जी
खंजरी, शंख, कास्ट तरंग और घुंघरू- नन्द किशोर
रंग वस्तु- सत्य प्रकाश व समूह
रूप सज्जा- जीतेन्द्र जीतू
प्रायोजित संगीत - राजीव कुमार
कार्ड फोल्डर डिजाईन व प्रचार प्रसार- प्रदीप्त
मिडिया - उतम कुमार, राजदेव, राजनन्दन
फोटोग्राफी - संदीप और प्रिंस राज ओम
पूर्वाभ्यास प्रभारी- तेज नारायण
प्रेक्षगृह प्रभारी - तरुण कुमार
विशेष आभार - विजेंद्र कुमार टाक, डॉ शैलेन्द्र कुमार, हरिशंकर रवि, राजेश रजा, आदिल रशीद, समीर चंद्र, कुंदन कुमार, राजन कुमार सिंह, संजय उपाध्याय (निर्देशक मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय ) व मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय परिवार.
निर्देशन- मोहम्मद जहाँगीर ( सचिव, आशा छपरा)
Nice
ReplyDelete