मंगलमय हो सुन्दर- सुन्दर
तिमिर गहन का नाम नहीं हो
द्वेष-घृणा सब तिरोहित हों
कहीं क्लेष, दुर्भाव नहीं हो
जन-जन में उत्कर्ष भरो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
धरती बिहँसे, अम्बर गाये
जग- आँगन में ख़ुशी समाये
बोध परायेपन का रहे ना
सुख-सपनों की बदली छाये
जगमग-जगमग विश्व करो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
जीवन वसंत- सा चहक उठे
सुरभित जग का हर कोना हो
तन-मन निर्मल-निष्पाप बने
नवल-नवल कण-कण चिन्मय हो
मधुर मधु संस्पर्श करो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
प्रदीप्त
तिमिर गहन का नाम नहीं हो
द्वेष-घृणा सब तिरोहित हों
कहीं क्लेष, दुर्भाव नहीं हो
जन-जन में उत्कर्ष भरो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
धरती बिहँसे, अम्बर गाये
जग- आँगन में ख़ुशी समाये
बोध परायेपन का रहे ना
सुख-सपनों की बदली छाये
जगमग-जगमग विश्व करो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
जीवन वसंत- सा चहक उठे
सुरभित जग का हर कोना हो
तन-मन निर्मल-निष्पाप बने
नवल-नवल कण-कण चिन्मय हो
मधुर मधु संस्पर्श करो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
प्रदीप्त