Through My Eyes
Thursday, 8 February 2018
बेटे- बेटियाँ और संस्कार
Saturday, 27 January 2018
इंसान हूं इंसान के काम आता हूं।
पिछले दिन (26 जनवरी 2018) को माँ के दरबार से ससम्मान मुझे बुलावा आया। माँ छोटी पटन देवी शक्तिपीठ मंदिर गौ मानस संस्थान पटना सिटी के पावन स्थल पर मुझे रक्तदान के क्षेत्र में सम्मानित किया गया। मैं प्रदीप्त (सचिव– मिनेर्वा आर्गेनाइजेशन) उन सभी सुधिजनो को धन्यवाद देता हूं, जो प्रतिपल मेरे साथ खड़े है। आपको बता दू की हमारी संस्था खुशहाल भारत का सपना लिए अग्रसर है। वो सब के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहता है, और मुझे इस पहल में आप सबका साथ चाहिए। मुझे जब भी समय मिलता है, अपने पहल के बारे में लोगो को जरूर बताता हूँ, उन्हें रक्तदान करने के लिए प्रेरित करता हूँ कि आगे आये और स्वेच्छिक रक्तदान करे। आपके द्वारा दिए खून से किसी की जान तो बचती ही है, साथ ही उनसे एक खून का रिश्ता भी बन जाता है। डोनेशन के उपरांत मिले डोनर कार्ड से आप स्वयं किसी जरूरतमंद की मदद कर सकते है। जब भी रक्तदान के बाद 90 दिन हो और आपकी शारीरिक स्थिति डॉक्टर के अनुसार ठीक हो तो पुनः आप जाकर अपने नजदीकी ब्लड बैंक में रक्तदान करे। जो भी मित्र अब तक रक्तदान नही किये है। उनसे मेरा निवेदन है कि आप भी आगे आये और रक्तदान करे। मुझे पूर्णतः विश्वास है कि आप सभी रक्तवीर रक्तदान के लिए जरूर आगे आएंगे।
Sunday, 31 December 2017
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
मंगलमय हो सुन्दर- सुन्दर
तिमिर गहन का नाम नहीं हो
द्वेष-घृणा सब तिरोहित हों
कहीं क्लेष, दुर्भाव नहीं हो
जन-जन में उत्कर्ष भरो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
धरती बिहँसे, अम्बर गाये
जग- आँगन में ख़ुशी समाये
बोध परायेपन का रहे ना
सुख-सपनों की बदली छाये
जगमग-जगमग विश्व करो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
जीवन वसंत- सा चहक उठे
सुरभित जग का हर कोना हो
तन-मन निर्मल-निष्पाप बने
नवल-नवल कण-कण चिन्मय हो
मधुर मधु संस्पर्श करो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
प्रदीप्त
तिमिर गहन का नाम नहीं हो
द्वेष-घृणा सब तिरोहित हों
कहीं क्लेष, दुर्भाव नहीं हो
जन-जन में उत्कर्ष भरो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
धरती बिहँसे, अम्बर गाये
जग- आँगन में ख़ुशी समाये
बोध परायेपन का रहे ना
सुख-सपनों की बदली छाये
जगमग-जगमग विश्व करो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
जीवन वसंत- सा चहक उठे
सुरभित जग का हर कोना हो
तन-मन निर्मल-निष्पाप बने
नवल-नवल कण-कण चिन्मय हो
मधुर मधु संस्पर्श करो हे
नवल वर्ष नव हर्ष भरो हे।
प्रदीप्त
Friday, 29 December 2017
खुनी सलीब ©
मस्ज़िद ने कहा,
इबादत करो
अल्लाह मिलेगा।
इबादत की,
खुदा न मिला,
पत्थरो से टकराना पड़ा।
गुरूद्वारे गए,
मत्थे टेका,
अरदास की
लंगर में बैठा,
पर, वहां से भी
खाली हाथ लौटना पड़ा।
मंदिरो में सर झुकाते-झुकाते
चढ़ावे में जो भी दिया
ईश्वर ने छुआ तक नहीं,
एक नजर देखा तक नहीं,
प्रसाद कुत्ते खा गये।
उमर गुजार दी
गिरजाघरों की चौखट पर।
मरियम की मासूम निगाहो में
आंसू के सफ़ेद फूल
खिले तो जरूर थे
पर दामन में जगह नहीं थी
उन्हें समेटने की
क्यूंकि दमन दाग-दाग था।
शूलों से तार-तार था
अपने- परायों के बोध ने
उसे गन्दा कर दिया था
आदमी का चेहरा
नंगा कर दिया था।
कभी अयोध्या,
कभी बंजर धरती पुकारती रही
हम तन से पुजारी तो जरूर रहे
पर मन लटका रहा
हमेशा किसी- न - किसी
खुनी सलीब पर।
प्रदीप्त ©
दृश्य Google wall से
Monday, 4 December 2017
लंबी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।
लंबी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।
कई बार लोग कामयाबी के बहुत करीब पहुच कर हार मान लेते हैं . आपको ध्यान देना होगा कि आप अपने काम को अंजाम तक पहुचाएं , किसी भी काम को करने में time तो लगता ही है और जब काम बड़ा हो तो समय भी बड़ा लगता है .
Kentucky Fried Chicken (KFC) के founder Colonel Sanders ने जब अपनी business idea के लिए लोगों को convince करना चाहा तो उन्हें हज़ार से भी अधिक बार ना सुननी पड़ी. वह अपनी कार में एक शहर से दूसरे शहर घूमते रहे और restaurant मालिकों से मिलते रहे , और इस दौरान कई बार उन्हें अपनी कार में ही सोना पड़ता था. पर इतनी ना सुनने के बाद भी उन्हें अपनी चिकन बनाने की secret recipe पर यकीन था और देर से ही सही पर उन्हें सफलता मिली और आज KFC दुनिया भर में एक successful brand के रूप में जाना जाता है.
Tuesday, 15 August 2017
रामलीला में समाज की लीला देखने को मिली।
दिनांक १३/०८/२०१७ को कालिदास रंगालय, पटना में "आशा" संस्था के द्वारा नाटक रामलीला का मंचन किया गया, इस नाटक के निर्देशक रहे मोहम्मद जहांगीर ने अपने नाटक रामलीला के द्वारा फिर से एक मिशाल कायम की है, । निर्देशक का काम ही होता है, अभिनेता में छुपे अभिनय को निकाल उसे तरासना, और उसे उस मंच लायक बनाना जहाँ वो जाना चाहता है, चाहे वो कोई भी मंच क्यों ना हो।
युवा निर्देशक मोहम्मद जहांगीर ने इससे पहले भी कई नाटको (हाथी, एक और दिन, महा निर्वाण, पकवा घर , अटकी हुई आत्मा,) आदि का निर्देशन किया है। कहानी का मंचन करना अपने आप में एक चुनौती होती है। उसके बावजूद भी अपने और अपने साथ जुड़े रंगकर्मियों के ऊपर विश्वास और अपने काम के प्रति एक सच्ची निष्ठा ही उन्हें एक सफल निर्देशक होने का श्रेय प्रदान करता है।
मुंशी प्रेमचंद की कहानी "रामलीला" और ऊपर से नौटंकी शैली दोनों का मिलान एक साथ देख कर काफी अच्छा लगा। रामलीला के सभी अभिनेता ने अपने अभिनय की एक अमिट छाप छोड़ी है। राम -लक्ष्मण-सीता के साथ आबादीजान ने भी अपनी अदा से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। मुझे याद है की ये पूरा नाटक एक वर्कशॉप के माध्यम से खड़ा हुआ था। ताकि अभिनेता अपने अंदर छुपे कला को पहचाने और आपने आप को जान सके । सारे वस्त्र और आभूषण जो अभिनेताओं को चरित्र चित्रण में सहयोग कर रहे थे, खुद अभिनेताओं द्वारा ही निर्मित थे , चाहे वो धनुष हो, गदा हो, या विशाल छत्र।
राम का श्रृंगार करता युवक |
नाटक रामलीला का एक दृश्य |
नाटक की बात करे तो, ये नाटक एक बच्चे के मन से समाज के लोगो के दोहरे चरित्र को समझने की कोशिश है। रामलीला एक बच्चे की कहानी है, जो बचपन से अपने गांव में होने वाले रामलीला को देख काफी प्रभावित होता है, और उस रामलीला में बने राम को ही वास्तविक का प्रभु राम समझता है और उनके प्रति श्रद्धा रखता है। जो की एक बाल मन के लिए स्वाभाविक है। वो उनके लिए जो बनता है, करता है। नाटक का एक गीत "गुल्ली डंडा खेले का बंडा " ने दर्शको को सीधा बचपन की ओर ले जाने पर विवस कर दिया। वही गीत "फुरकत के हजारो रातो में एक रात सुहानी मांगी थी " पर वेश्या की भूमिका कर रही अभिनेत्री ने उसे जीवंत कर दिया।
आबादीजान की भूमिका में साधना श्रीवास्तव |
आबादीजान की भूमिका में शिल्पा भारती |
नाटक के एक दृश्य में आबादीजान कहती है की - यहाँ आप-जैसे काइयों को रोज़ उँगलियों पर नचाती हूँ। ये काइयाँपन शब्द समाज को उन लोगो के सीधा सामने पाती है जो दोहरे चरित्र से है । यहाँ हर एक आदमी दूसरे आदमी को नसीहत देते दिखता है। पर खुद अमल नहीं करता है।
नाटक का अंतिम दृश्य |
नाटक के एक दृश्य जब रामलीला समाप्त हो जाती है तो उसी राम बने व्यक्ति को कोई पूछता तक नहीं है। उनके पास वापस जाने को किराये तक के पैसे नहीं होते है, जबकि नाचने वाली औरतो पर लोग पैसे लुटा झूठी शान दिखा रहे होते है। और ऐसे लोगो में उस बच्चे के पिता भी होते है। जो राम के प्रति श्रद्धा रखता है। यह सब देख कर वो बाल मन बैचैन हो उठता है। वह अपने पिता से भी पैसे मांगता है मगर वो इंकार कर देते है। जिससे बच्चे के मन में पिता के प्रति नफरत भर जाती है। और अंत में वो बालक अपने जमा दो आने पैसे उस इंसान रूपी राम को देता है।
नाटक के अंतिम पंक्ति ने उस बच्चे के भाव को कुछ यू समेटा- उन पैसों को देखकर रामचंद्र को जितना हर्ष हुआ, वह मेरे लिए आशातीत था। टूट पड़े, प्यासे को पानी मिल गया।
यही दो आने पैसे लेकर तीनों मूर्तियाँ बिदा हुई! केवल मैं ही उनके साथ क़स्बे के बाहर तक पहुँचाने आया। उन्हें बिदा करके लौटा, तो मेरी आँखें सजल थीं, पर हृदय आनंद से उमड़ा हुआ था।
मंच पर
शिल्पा भारती/ साधना श्रीवास्तव
अजित कुमार
चन्दन कुमार प्रियदर्शी
मोहम्मद फुरकान
राहुल कुमार
शशांक शेखर
उज्जवल कुमार
सन्नी कुमार
कोरस- तेज नारायण, राज, अनुराग, अंशु, राजकुमार,
मंच परे
प्रकाश परिकल्पना- राहुल रवि, रौशन कुमार
संगीत - अजित कुमार
गीत - समूह
स्वर - मोहम्मद आसिफ, संतोष कुमार तूफानी, स्वरम उपाध्याय, निशा कुमारी, उदय कुमार
हारमोनियम- मोहम्मद आसिफ
ढोलक- हीरालाल
नगाडा- अरुण कुमार
क्लानेर्ट- कामाख्या जी
खंजरी, शंख, कास्ट तरंग और घुंघरू- नन्द किशोर
रंग वस्तु- सत्य प्रकाश व समूह
रूप सज्जा- जीतेन्द्र जीतू
प्रायोजित संगीत - राजीव कुमार
कार्ड फोल्डर डिजाईन व प्रचार प्रसार- प्रदीप्त
मिडिया - उतम कुमार, राजदेव, राजनन्दन
फोटोग्राफी - संदीप और प्रिंस राज ओम
पूर्वाभ्यास प्रभारी- तेज नारायण
प्रेक्षगृह प्रभारी - तरुण कुमार
विशेष आभार - विजेंद्र कुमार टाक, डॉ शैलेन्द्र कुमार, हरिशंकर रवि, राजेश रजा, आदिल रशीद, समीर चंद्र, कुंदन कुमार, राजन कुमार सिंह, संजय उपाध्याय (निर्देशक मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय ) व मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय परिवार.
निर्देशन- मोहम्मद जहाँगीर ( सचिव, आशा छपरा)
Thursday, 3 August 2017
मुखौटा
लालटेन सा जलता रहता
हरियाली का पुंज मुखौटा
आड़े- तिरछे किस्म-किस्म के
अमेरिका से चला मुखौटा
हर सीमा में जायेगा यह
एक मुखौटा ले लो भाई
विधानसभा पहुचने वाला
संसद में चिल्लाने वाला
तरह-तरह के लोभ दिखाकर
सबको ही भरमाने वाला
तुम भी नेता बनकर चहकों
एक मुखौटा ले लो भाई
नेता- सा ही धीर, चपल है
गुण-अवगुण से परे मुखौटा
सब देशों से हाथ मिलाता
अपनों से ही कटा मुखौटा
कीमत चाहे जो भी दे दो
एक मुखौटा ले लो भाई
इसकी कोई जात ना होती
वर्ण- भाव से उठा मुखौटा
अगड़ी- पिछड़ी कुछ ना देखे
काम-भाव का बना मुखौटा
जब भी चाहे अलग हटा दो
एक मुखौटा ले लो भाई
गद्दी पर पहुचने वाला,
गद्दी से लुढकाने वाला
सर्कश का खेल दिखाकर
छु-मंतर हो जाने वाला
टास्क फ़ोर्स सा करे निशाना
एक मुखौटा ले लो भाई
इसकी गाँठ न खोले कोई
चाहे जितनी कसमे ले लो
चाहे तो भरपूर परख लो
जी भर इसको दरस - परख लो
कभी नहीं यह थकने वाला
एक मुखौटा ले लो भाई
अगर मुखौटा फिसल गया तो
तुम बिन पेंदी लोटा होगे
लाख बचाओ, बच ना सकोगे.
लीडर से तुम गीदड़ होगे
इसलिये तो मै कहता हू
एक मुखौटा ले लो भाई
प्रदीप्त

आड़े- तिरछे किस्म-किस्म के
अमेरिका से चला मुखौटा
हर सीमा में जायेगा यह
एक मुखौटा ले लो भाई
विधानसभा पहुचने वाला
संसद में चिल्लाने वाला
तरह-तरह के लोभ दिखाकर
सबको ही भरमाने वाला
तुम भी नेता बनकर चहकों
एक मुखौटा ले लो भाई
नेता- सा ही धीर, चपल है
गुण-अवगुण से परे मुखौटा
सब देशों से हाथ मिलाता
अपनों से ही कटा मुखौटा
कीमत चाहे जो भी दे दो
एक मुखौटा ले लो भाई
इसकी कोई जात ना होती
वर्ण- भाव से उठा मुखौटा
अगड़ी- पिछड़ी कुछ ना देखे
काम-भाव का बना मुखौटा
जब भी चाहे अलग हटा दो
एक मुखौटा ले लो भाई
गद्दी पर पहुचने वाला,
गद्दी से लुढकाने वाला
सर्कश का खेल दिखाकर
छु-मंतर हो जाने वाला
टास्क फ़ोर्स सा करे निशाना
एक मुखौटा ले लो भाई
इसकी गाँठ न खोले कोई
चाहे जितनी कसमे ले लो
चाहे तो भरपूर परख लो
जी भर इसको दरस - परख लो
कभी नहीं यह थकने वाला
एक मुखौटा ले लो भाई
अगर मुखौटा फिसल गया तो
तुम बिन पेंदी लोटा होगे
लाख बचाओ, बच ना सकोगे.
लीडर से तुम गीदड़ होगे
इसलिये तो मै कहता हू
एक मुखौटा ले लो भाई
प्रदीप्त
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